मूल विगलन

यह रोग सभी दलहनी फसलों में लगता है। जैसा कि नाम से विदित है इस रोग में संक्रमित पौधे की जड़ें गल/सड़ जाती हैं। इस रोग का प्रकोप देश के उत्तर-पूर्वी एवं उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र, मध्य क्षेत्र, दक्षिणी क्षेत्रों में होता हैं। इस रोग से ग्रसित पौधे पीले दिखायी पड़ते हैं तथा मुरझा कर मर जाते हैं। लक्षणों के आधार पर उकठा एवं मूल विगलन को पहचाना जा सकता है। संक्रमित पौधे आसानी से उखड़ जाये तो यह मूल विगलन लक्षण हो सकते है। उकठा ग्रसित पौधो में मूल तन्त्र नष्ट नहीं होता इसलिये इन पौधों को बल प्रयोग करके ही उखाड़ा जा सकता है। 
यह रोग सामान्यतः राइजोक्टोनिया कवक की दो प्रजातियाँ सोलेनि तथा बटाटिकोला द्वारा होता है। राइजाक्टोनिया सोलेनि द्वारा मूल विगलन को आर्द्र मूल विगलन कहते है व राइजोक्टोनियां बटाटिकोला संक्रमण द्वारा मूल विगलन को शुष्क मूल विगलन कहते हैं। इस संक्रमण में पौधे की जड़ें मुलायम तथा गल जाती हैं। यह मृदा बीज जनित रोग है।

शुष्क मूल विगलन रोग
शुष्क मूल विगलन रोग फसल की परवर्ती अवस्था में अधिक व्यापक होता है जिससे फसल को अधिक हानि होती है। मृदा नमी की कमी होने पर   एवं  दिन में वायु का तापमान 300 सेंटिग्रेड से अधिक होने पर इस बीमारी का गंभीर प्रकोप होता है। सामान्यतया इस बीमारी का प्रकोप पौधां में फूल आने एवं फलियॉ बनते समय होता है। बालुई मिटटी में यह रोग उग्र रूप में दिखयी देता है।

लक्षण

  • रोग की प्रारम्भिक अवस्था में पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं तथा प्रभावित पौधे धीरे-धीरे सूख जाते हैं।  रोगग्रस्त  पौधों की शीर्ष् पत्तिया झुक जाती है।
  • मूल विगलन से ग्रसित पौधे सामान्यतः समूहों में दिखते हैं। 
  • इसके संक्रमण में जड़ें गल जाती हैं। रोगी पौधों में मूसला जड़ को छोड़कर सभी जड़ें नष्ट हो जाती हैं और मूसला जड़ काली होकर सड़ने लगती हैं एवं आसानी से टूट जाती हैं। जड़ों के दिखाई देने वाले भाग और तनों के आन्तरिक भाग पर छोटे काले रंग की फफूँदी के बीजाणु देखे जा सकते हैं। पौधे को उखड़ने पर उसकी जड़े मिटटी में हो जाती है।

काला मूल विगलन रोग

यह रोग फ्यूजेरियम सोलेनाई नामक कवक द्वारा होता है। इस रोग का प्रकोप प्रायः खेत में सामान्य से अधिक जल मात्रा रहने तथा कम वातावरणीय तापमान होने पर देखा जाता है। 

  • संक्रमित पौधे की जडें काली हो जाती हैं  एवं तथा पौधे का ऊपरी भाग पीला पड़ जाता है।
  • अक्सर संक्रमण पौधे के मूलतन्त्र में नई जड़ें विकसित हो जाती हैं जिनके चलते संक्रमित पौधे लम्बे समय तक रह सकते हैं। 

आर्द्र मूल विगलन रोग
राइजोक्टोनिया सोलेनाई द्वारा मूल विगलन को आर्द्र मूल विगलन कहते है क्योंकि इस रोग से संक्रमित पौधों की जड़ें गल जाती हैं। 
लक्षण

  • इस रोग का संक्रमण सामान्यतः फसल की पौध अवस्था में अधिक होता है।
  • संक्रमित पौधे आसानी से उखड़ जाते हैं तथा इनकी जड़ें छूने पर गीली प्रतीत होती है।
  • इस रोग से ग्रसित पौधे पीले दिखाई पड़ते हैं तथा मुरझाकर मर जाते हैं।

 

रोग प्रबन्धन

  • समय से बुवाई व जल्दी पकने वाली प्रजातिया का चयन करने से गर्मी आने से पहले हो फसल पकजायेगी व रोग से बचाव किया जा सकता है।
  • गर्मी (मई-जून) के महीनों में खेत की 2-3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए। रोग पौधे के अवशेयां को खेत में न रहने दे।
  • क्षेत्र के लिए संस्तुत अवरोधी प्रजातियों का बुवाई के लिए चयन करें।
  • फसल चक्र अपनाएँ। एफ. वाइ . एम. के प्रयोग से रोग की तीव्रता को कम किया जा सकता  है।
  • ट्राइकोडर्मा पाउडर नामक जैव नियन्त्रण की 5 किलोग्राम मात्रा को 2.5 कुन्तल गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पूर्व खेतों में मिला देने से इस रोग के शुरूआती विकास को रोका जा सकता है। 
  • सिंचाई करने से इस रोग को नियन्त्रित किया जा सकता  है। फूल व फली आने के समय खेत में नमी की कमी न होने दे ।
  • केवल कार्बोडाजिन या कार्बो डाजिम को थिरम साथ मिलाकर बीज उनचार करना चाहिये कार्बोडाजिम 2 ग्राम प्रति + टी. विरिडी. 4 ग्राम प्रति किग्रा की दर से गीज उपचारित करे।