मूंग सम्मिलित फसल प्रणाली
मूंग की विभिन्न परिपक्वता अवधि वाली, तापक्रम एवं प्रकाश के प्रति असंवेदनशील, विभिन्न पौध स्वरुप एवं अधिक उपज वाली प्रजातियों के विकास से इसे कई फसल प्रणालियों में स्थान मिला है। खरीफ में मूंग को सामान्यतः मक्का, बाजरा, अरहर तथा कपास के साथ अन्तः फसल के रुप में उगाया जाता है। देश के दक्षिणी व पूर्वोत्तर राज्यों में मूंग की खेती धान के बाद रबी की ऋतु में की जाती है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड, पंजाब, हरियाणा व राजस्थान में मूंग की फसल जायद/गर्मी में की जाती है। उत्तर भारत गेहू और धान के मध्य (मार्च से जून) जो छोटा अवकाश मिलता है उसमें किसान मूॅग की खेती करके आर्थिक लाभ प्राप्त करने के साथ साथ मृदा की उर्वरकता शक्ति को भी बढाते है दक्षिण भारत में समुद्र के किनारे के क्षेत्रों में तीनों मुख्य ऋतुओं में मूंॅग की फसल उगायी जाती है पश्चिम बंगाल में इसकी टोसा जूट के साथ (मध्य फरवरी तथा मार्च बुवाई) अंतः फसली खेती की जाती है।
वर्षा आश्रित क्षेत्रों में जहाँ पर अल्प अवधि वाली मूंग उगाते हैं, जहाँ मानसून आने के बाद इनकी बुवाई करके दूसरी फसल को उगाया जाता है। मूंग-सरसों, मूंग-सरसों, मूंग-कुसुम, मूंग-अलसी तथा मूंग (हरी खाद)-गेहूँ सफल प्रणलियाँ हैं। सिंचित दशाओं में मूंग को शामिल करके निम्नलिखित फसल प्रणालियाँ उपयुक्त पायी गयी हैंः
- धान-गेहूँ-मूंग
- मक्का-गेहूँ-मूंग
- मक्का-तोरिया-मूंग
- अरहर+मूंग-गेहूँ-मूंग
- धान-आलू-जूट+ मूंग
- धान-गेहूँ-जूट+मूंग
- अरहर-गेहूँ-मूंग
- कपास-मूंग
- मूंग-गेहूँ-मूंग
- मूंग-सरसों-मूंग