फाइटोफ्थोरा अंगमारी
इस रोग को फाइटोफ्थोरा तना मारी भी कहते है यह केवल अरहर में ही संक्रमण करता है। इसका प्रयोग मुख्यतः फसल की प्रारम्भिक अवस्था (बुवाई के 40-60 दिनों तक) में होता है। यह रोग इतना घातक होता है कि यदि रोग फैलने के लिये आवश्यक वातावरण अनुकूल हो तो फसल पूर्ण रुप से नष्ट हो सकती है। इस रोग के लक्षण सबसे पहले खेतों के निचले भागों जहांँ वर्षा का पानी इकट्ठा होता है, प्रकट होते है। इस रोग का प्रकोप फाइटोफ्थोरा ड्रेशलरी उप-प्रजाति केजानी नामक मृदाजनित कवक से फैलता है।
इस रोग का प्रकोप फाइटोफ्थोरा ड्रेशलरी उप-प्रजाति केजानी नामक मृदाजनित कवक से फैलता है।
रोग के लक्षण
रोग की प्रारम्भिक अवस्था में पत्तियों पर अनियमित आकार के जल सिक्त धब्बे/विक्षित बन जाते हैं। जोकि बाद में पौधे के तनें व शाखाओं पर काले रंग के छोटे-छोटे धब्बे के रुप में भी देखे जा सकते हैं। दूर से देखने पर फाइटोफ्थोरा तना मारी ग्रसित पौधे मुरझाये हुए तथा पास से देखने पर रोगी पौधों के तने तथा शाखाओं पर भूरे व काले रंग के विक्षित देखे जा सकते हैं। यह विक्षत सामान्यतः पौधे के निचले भाग में तथा मुख्यतः स्तम्भ मूलसंधि क्षेत्र के आस-पास अधिक होते हैं। परन्तु कभी-कभी यह 1-1.5 मीटर ऊँचाई तक भी बन सकते हैं। रोगी पौधों के तने व शाखाओं में विक्षिप्त हल्के काले या भूरे रंग के धब्बों के रुप में प्रकट होते हैं, जोकि तने को चारो ओर से छल्ले के रुप में घेर लेते हैं जिसके फलस्वरुप पौधे सूखने लगते हैं।
प्रबन्धन
- चूंकि इस रोग का प्रकोप फसल की प्रारम्भिक अवस्था में तथा खेत में जल भराव की स्थिति में अधिक होता है, अतः बुवाई के 50-60 दिनों तक खेत में जल भराव की स्थिति न हो इसका ध्यान रखना चाहिए।
- बुवाई के लिए ऐसे खेतों का चयन करना चाहिए जहाँ पानी निकासी का उचित प्रबन्ध हो।
- अरहर की बुवाई मेड़ों पर करनी चाहिए।
- यदि उपलब्ध हो तो क्षेत्र के अनुसार रोगरोधी प्रजातियों का चयन करना चाहिए।
- बुवाई से पहले बीज को मेटालेक्सिल (2.0 ग्राम) या ट्राइकोडर्मा पाउडर (10 ग्राम) से उपचारित करना चाहिए।