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कटुआ (एग्रोटिस इंपसिलॉन)

कटुआ (एग्रोटिस इंपसिलॉने)

काटुआ का प्रकोप सम्पूर्ण भारत में दंखने को मिलता है किन्तु उत्तर तथा उत्तर पूर्वा भारत मे विशेषकर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में तथा जहा मृदा में कार्बनिक पदार्थो की अध्किता होती है वहा अससे अपेक्षाकृ अधिक क्षति पहुचती है जैसे बिहार के ताल क्षेत्र यह कीड़ा दिन ममें छिपा रहता है व रात्रि में बाहर निकलता है।

कटुआ अथवा कट वर्म उत्तर पूर्वी भारत के कई क्षेत्रों में चना की फसल को हानि पहुँचाता है। इस कीट का प्रकोप प्रायः उन क्षेत्रों में विशेष रुप से होता है। जहं बुंआई से पूर्व बरसात का पानी भरा रहता है। बिहार का “मोकामा ताल“ प्रमुख उदाहरण है। इस कीट की गिडारें चिकनी एवं लिजलिजी होती हैं। यह कीट लगभग 2-5 से.मी. लम्बा तथा लगभग 0.7 से.मी. चौड़ा मटमैले रंग का होता हैं। इस कीट की गिडारें देखने में हल्के स्याह या गहरे भूरे रंग की तैलीय होती है जो ढे़लों के नीचे छिपी रहती है और रात को बाहर निकलकर पौधों को उगते ही जमीन की सतह से काट देती हैं। इस कीट का आकमण पौधे के बडे़ होने पर भी जारी रहता है। गिडारें पौधे को काटने के उपरान्त थोड़ी दूर खींचकर जमीन में खड़ा गढ़कर छोड़ देती हैं। इस प्रकार की बिखरी, मुरझायी हुई टहनियों या तनों को देखकर कटुआ कीट की उपस्थिति का ज्ञान आसानी से हो जाता है। क्षति ग्रस्त पौधों के आस-पास की भूमि को थोड़ा हटाने पर गिडारें दिखायी पड़ती हैं और कभी-कभी ज्यादा प्रकोप की स्थिति में  पुनः बुआई करनी पड़ती है।

कटुआ का प्रबन्धन 

  • ग्रीष्म ऋतु में खेत की मटटी जुताई करें।
  • क्लोरीपायरीफास 20 ई.सी. की 1.0 लीटर मात्रा प्रति 100 कि.ग्रा. बीज की दर से  बीज शोधन करें।
  • यदि मृदा का उपचार नहीं किया गया है तो तो शाम के समय क्विनालफोस 1.5% डी पी @ 25 किग्रा/हेक्टेयर का प्रयोग करें।
  • खड़ी फसल में क्लोरपायरीफॉस 20% ईसी @ 2500 मि.ली./हेक्टेयर के घोल को पौधों  की  जड़ों के  पास छिड़काव करना चाहिए।
  • फसल चक्र अपनाये तथा अलसी , गेहू सरसों के साथ अन्त फसली खेती करे।यदि भूमी उपचार नही कर पाएँ तो कटवर्म कटुआ का प्रभाव दिखाई देते ही शाम के समय क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्रा./हे. का भुरकाव करके प्रकोप से फसल को बचाया जा सकता है।बन्दो पर गेंदे की फसल लगाये ।
  • खेत में जगह-जगह सूखी घास के छोट-छोटे ढेर को रख देने से दिन में कटुआ कीट की सूँडिया छिप जाती है। जिसे प्रातःकाल इकट्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • एक हेक्टेयर क्षेत्र में 50-60 बर्ड पर्चर (पक्षी मचान) लगाना चाहिए ताकि चिड़िया उन पर बैठकर सूँडियों को खा सके  क्विनाल फास 25 ई. जी. अथवा प्रोफेनोफाम  50 ई. सी. का  2मिली प्रति की दर से छिड़काव करे ।

 कटुआ का  कीट प्रबंधन

  • क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. की 1.0 लीटर मात्रा से प्रति 100 कि.ग्रा.बीज का शोधन करने से कटुआ का प्रकोप कम होता है।
  • जुताई के समय लिन्डेन धूल को 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलाना चाहिए।
  • खड़ी फसल में 0.05% क्लोरोपायरीफॉस के घोल को पौधों की जड़ों के पास छिड़काव करना चाहिए।
  • समेकित कीट एवं रोग प्रबंधन फसल सुरक्षा का मिला जुला तंत्र है, जिससे सावधानी पूर्वक हनिकारक कीटों एवं रोगों के नियंत्रण तथा उनके प्राकृतिक शत्रुओं के संरक्षण की प्रतिकियाओं पर ध्यान दिया जाता है। समेकित कीट एवं रोग प्रबंधन के मुख्य अंग हैं - हानिकारक कीटों व रोगों की निगरानी, समय से सस्य क्रियाओं का क्रियानवयन, जैविक नियंत्रण, प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन, वानस्पतिक स्त्रोतों से प्राप्त कीटनाशक तथा उनका व्यवसायिक उत्पादन एवं प्रयोग, वातावरण को कम हानि पहँचाने वाले कीट/फफूँदी/सूत्रकृमिनाशी रसायनों का प्रयोग इत्यादि।
           यद्यपि प्रमुख कीटों, बीमारियों और सूत्रकृमि के  लिये प्रबंधन प्रक्रियाएं अतीत में विकसित की गई हैं परन्तु ये फसल उत्पादन संकुल में अच्छी तरह एकीकृत नहीं की गई हैं। कीट रोग और सूत्रकृमि के प्रबंधन विकल्प नीचे दिये गये है।  क्षेत्र के लिये संस्तुत प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन।
  • उर्वरकों का संतुलित उपयोग पोटाश सहित फसल में कीट सहनशीलता सुनिश्चित करने के लिये।
  • क्षेत्र के लिये सस्तुत समय पर बुवाई।
  • कार्बेन्डाजिम (1 ग्रा)$ थिरम (2 ग्रा) कि.ग्रा. बीज या ट्रªाइकोडर्मा (6 ग्राम)$ कार्बोक्सिन (1 ग्रा)/ कि.ग्रा. बीज से बीजोपचार।
  • सूत्रकृमि ग्रसित मिट्टी में कार्बोसल्फान 3 ग्रा./ कि.ग्रा. से बीजोपचार।
  • फसल की नियमित निगरानी।
  • स्केलेरोटीनिया तना अंगमारी लगने पर कार्बेन्डाजिम 1 गा्र./ली. पानी के घोल का छिड़काव।
  • संक्रमितपौधों को खेत से निकाल कर नष्ट करना।
  • खेत में जल निकासी ठीक रखें।
  • कीट नियंत्रण हेतु पहला छिड़काव 5 प्रतिशत निबौली के सत् का करें।
  • आवश्यकतानुसार दूसरा छिड़काव प्रोफेनोफोस 50 ई.सी. 2 मि.ली./लीटर पानी से करे

जब 80 प्रतिशत फलियॉ पक जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। देरी करने से फलियॉ झड़ जाती हैं । पौधों के सूखने का इंतजार नहीं करना चाहिए। यदि पूर्णरूप से फसल सूख गई हो तो सुबह के समय कटाई करते है। तत्पश्चात मड़ाई करते है। दानों में नमी 12 प्रतिशत के नीचे होने पर भण्डारण करना चाहिए। 

दानों को भली भॉति सुखाने के बाद भण्डारण करना चाहिए।