फसल चक्रः
खरीफ या वर्षा ऋतु की फसलें जैसे- मक्का, बाजरा, ज्वार, तिल, धान इत्यादि की कटाई के तत्पश्चात् चना की बुवाई की जा सकती है। चना की बुवाई अन्तः फसल, रिले फसल, मिश्रित फसल, एकल फसल के रूप में अनाज आधारित फसल चक्र में करनी चाहिए। फिर भी यदि सम्भव नही हो तो अन्य दलहन जैसे- मूँग, उर्द, सोयाबीन या अन्य फसल जैसे- कपास इत्यादि की कटाई के बाद चना की बुवाई कर सकते है। चना की फसल लेने के बाद अनुगामी फसल के लिए नत्रजन उर्वरक की बचत की जा सकती है। उदाहरण स्वरूप जैसे- चना के बाद यदि मक्का की फसल लेने पर लगभग 50-60 किग्रा/हे, नत्रजन उर्वरक की बचत की जा सकती है।
वैसे तो अधिकतर किसान चना की एकल फसल ही उगाते है। परन्तु अन्तःफसल के रूप में उगाने से उत्पादकता एवं आय में वृद्धि होती है। चना आधारित प्रमुख अन्तः फसल निम्नांकित हैं-
चना + अलसी (4:2) के अनुपात में, -
चना + कुसुम (4:1) के अनुपात में, -
चना + सरसों (6:2) के अनुपात में, -
मिश्रित खेती
किसान सामान्यतः सरसों या जौ के साथ चना की खेती मिश्रित फसल के रूप में करते हैं जो की वैज्ञानिक दृष्टि से उत्तम नही है। चना को मिश्रित फसल की बजाय यदि अन्तः फसल के रूप में पंक्तिबद्ध उगाए तो अन्तः शस्य क्रियाएँ करने में आसानी होती है एवं अन्य शस्य प्रबन्धन भी आसानी से कर सकते है। अतः मिश्रित फसल नही लेवे।चना आधारित प्रमुख फसल पद्वतियाँ निम्नांकित है।
मक्का चना
ज्वार - चना
ज्वार + उर्द - चना
मक्का - गेंहूँ + चना
मक्का - जौ + चना
सोयाबीन - चना
बाजरा - चना
तिल - चना