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समेकित प्रबंधन

समेकित कीट एवं रोग प्रबंधन फसल सुरक्षा का मिला जुला तंत्र है, जिससे सावधानी पूर्वक हनिकारक कीटों एवं रोगों के नियंत्रण तथा उनके प्रोकृतिक शत्रुओं के संरक्षण की प्रतिकियाओं पर ध्यान दिया जाता है। समेकित कीट एवं रोग प्रबंधन के मुख्य अंग हैं - हानिकारक कीटों व रोगों की निगरानी, समय से सस्य क्रियाओं का क्रियानवयन, जैविक नियंत्रण, प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन, वानस्पतिक स्त्रोतों से प्राप्त कीटनाशक तथा उनका व्यवसायिक उत्पादन एवं प्रयोग, वातावरण को कम हानि पहँचाने वाले कीट/फफूँदी/सूत्रकृमिनाशी रसायनों का प्रयोग इत्यादि।

       यद्यपि प्रमुख कीटों, बीमारियों और सूत्रकृमि के  लिये प्रबंधन प्रक्रियाएं अतीत में विकसित की गई हैं परन्तु ये फसल उत्पादन संकुल में अच्छी तरह एकीकृत नहीं की गई हैं। अरहर में कीटों, सूत्रकृमियों, उकठा ,अंगमारी रोग ,चना में उकठा /जड गलन रोग के लिये समेकित प्रबन्धन तकनीकि (आई‐पी‐ माड्यूल) विकसित की गई हैं। फसल चक्र, पंक्तियों के बीच अधिक दूरी, कीट रोग और सूत्रकृमि सहनशील प्रजातियों के साथ कीटनाशी, कवकनाशी तथा सूत्रकृमिनाशी का सीमित उपयोग परंपरागत किसानों के द्वारा प्रायोग किये जा रहे हैं। हाल के दिनों में कुछ कीट और रोगों कं लिये प्रतिरोधक प्रजातियों के विकाश में कुछ प्रगति हुई है परन्तु इनका प्रभावी उपयोग आंशिक है। इस पर और काम करने की जरुरत है। कीट, रोग और सूत्रकृमि प्रबंधन के अन्य साधनों के उपयोग के लिये काफी गुंजाइश है। परपोषी प्रतिरोधकता के साथ सस्य प्रक्रियायें और जैविक नियंत्रण का उपयोग भी एक विकल्प है। कीट रोग और सूत्रकृमि के प्रबंधन विकल्प फसल वार नीचे दिये गये है। :

  • बुवाई से पहले
  • बुवाई के समय
  • खड़ी फसल 

बुवाई से पहले

ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई ।

  • क्षेत्र के अनुसार रोग रोधी प्रजातियों का चयन।
  •  सूत्रकृमि ग्रसित खेत में निबौली चूर्ण का 50 कि.ग्रा./हे. प्रयोग अथवा फोरेट 10 जी का 1- 1.5 कि.ग्रा सक्रिय अवयव/हे. का उपयोग।
  •  संतुलित उर्वरकों विशेष कर पोटाश का उपयोग।

बुवाई के समय

  • मेंड़ो पर बुवाई
  • क्षेत्र के अनुसार ज्वार, तिल, आदि के साथ संस्तुत पंक्ति अनुपात में।
  • कार्बेन्डाजिम 1 ग्रा. अथवा ट्रªइकोडर्मा (10 ग्रा.) +कार्बोक्सीन (1 ग्रा.) प्रति कि.ग्रा की दर से बीजोपचार।
  • बेवेरिया बेसियाना 1 ग्रा. अथवा इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लू.एस.5 ग्रा./कि.ग्रा. से बीजोपचार।
  • सूत्रकृमि ग्रसित खेत में कार्बोसल्फान 25 डी.एस. द्वारा 3 ग्रा./कि.ग्रा. की दर से बीजोपचार।
  • अरहर के रोगों व कीटों की गैर-परषोषी फसलों जैसे सरसों, प्याज, लहसुन, तिल, गेहूँ, धान, मक्का आदि फसल चक्र में सम्मिलित करना।

खड़ी फसल

  • खेत का सामयिक भ्रमण कर रोग-कीट का अवलोकन।
  • चार से पांच यौन आकर्षण जाल अथवा प्रकाश प्रपंच/हे. की दर  से कीटनाशी का छिड़काव

(क) अल्प व मध्यम कालीन अरहर

  • प्रोफेनोफास 50 ई.सी का 2 मि.ली./ की दर से प्रथम छिड़काव।
  • 5 प्रतिशत निबौली के सत का 1 दिन बाद दूसरा छिड़काव।
  • आवश्यकतानुसार तीसरा व चैथा छिड़काव 5 प्रति. निबौली के सत अथवा एच.ए.एन.पी.वी.250 गिडार समतुल्य (एल.इ.)/हे. की दर से करें।

(ख) दीर्घकालीन अरहर

  • रथम छिड़काव प्रांफेशनोंफाॅस 50 ई.सी. (2 मि.ली./ली.) अथवा डायथोएट 30 ई.सी .(2 मि.ली./ली.) अथवा इन्डाॅक्सार्ब 14.5 ए.सी. (60 ग्रा. सक्रिय अवयव/हे.) अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. (0.4 मि.ली./ली.) की दर से करें ।
  • दूसरा व तीसरा छिड़काव अल्प व मध्य अवधि की फसल की भाँति करें।