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कटुआ
इस कीट का प्रकोप उत्तर एवं उत्तर-पूर्वी भारत के कई क्षेत्रों में बहुतायत में होता है। जिन क्षेत्रों में बुवाई से पूर्व बरसात का पानी भरा रहता है प्रायः उन क्षेत्रों में इसका प्रकोप विशेष रूप से होता है। भारी मृदा (चिकनी मिट्टी) में भी इस कीट का प्रकोप होता है। कीट की गिड़ारें चिकनी, लिजलिजी एवं देखने में हल्के स्याह या गहरे भूरे रंग की तैलीय होती हैं। यह कीट रात्रि में पौधों को जमीन की सतह से काट देता है।

कटुआ का  कीट प्रबंधन

  • क्लोरीपायरीफास 20 ई.सी. की 1.0 लीटर मात्रा प्रति 100 कि.ग्रा. बीज की दर से  बीज शोधन करें।
  • जुताई के समय क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशित चूर्ण 25 किग्रा. प्रति हे. की दर से आखिरी जुताई से पूर्व भुरक कर भूमि में मिलाएं।
  • खड़ी फसल में 0.05 प्रतिशत क्लोरीपायरीफास के घोल को पौधों  की  जड़ों के  पास छिड़काव करना चाहिए।
  • यदि भूमी उपचार नही कर पाएँ तो कटवर्म कटुआ का प्रभाव दिखाई देते ही शाम के समय क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्रा./हे. का भुरकाव करके प्रकोप से फसल को बचाया जा सकता है।
  • खेत में जगह-जगह सूखी घास के छोट-छोटे ढेर को रख देने से दिन में कटुआ कीट की सूँडिया छिप जाती है। जिसे प्रातःकाल इकट्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • एक हेक्टेयर क्षेत्र में 50-60 बर्ड पर्चर (पक्षी मचान) लगाना चाहिए ताकि चिड़िया उन पर बैठकर सूँडियों को खा सके।