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पीत चितेरी रोग
यह एक विषाणु जनित रोग है जो देश के अधिकतर प्रदेशों जैसे उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, मध्य प्रदेश, छत्तीतगढ़, बिहार, झारखण्ड, हरियाणा, पंजाब, हिमांचल प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, उड़ीसा, आन्ध्रप्रदेश एवं तमिलनाडु में व्यापक रुप से उर्द की फसल को क्षति पहुंचाता है। यह रोग उर्द के अलावा कई दलहनी फसलों पर भी पाया जाता है। यह रोग सामान्य अवस्था में फसल बोने के लगभग दो से तीन सप्ताह के अन्दर प्रकट होने लगता है। पीत चितेरी रोग के कारण उपज में कितनी कमी आयेगी यह पौधों में रोग की अवस्था पर निर्भर करता है। जो प्रजातियाँ रोग अवरोधी नही हैं उनमें यह रोग आरम्भिक अवस्था से ही आ जाता है और उनमें उपज शून्य भी हो सकती है।

·        लक्षण

  • इस रोग को बडी ही सरलता से पहचाना जा सकता है।
  • इस रोग के प्रारंभिक लक्षण पत्तियों पर पीले धब्बे के रुप में दिखायी पड़ते हैं जो आपस में एक साथ मिलकर तेजी से फैलकर पत्तियों पर बड़े-बड़े धब्बे बनाते हैं। अन्ततः पत्तियाँँ पूर्ण रुप से पीली हो जाती हैं।
  • पीली पत्तियों पर ऊतकक्षय भी देखा गया है।
  • रोग ग्रसित पौधे देर से परिपक्व होते है तथा ऐसे पौधों में फूल और फलियॉँ स्वस्थ पौधों की अपेक्षा बहुत ही कम लगती हैं। पीत चितेरी रोग से ग्रसित पौधों में पत्तियों के साथ-साथ फलियों तथा दानों पर पीले धब्बे बनते देखे गये हैं।  

उर्द का यह रोग मँगबीन पीत चितेरी विषाणु द्वारा होता है। यह विषाणु मृदा, बीज तथा संस्पर्श द्वारा संचारित नहीं होता है। पीत चितेरी रोग सफेद मक्खी के द्वारा फसलों पर फैलता है। सफेद मक्खी काफी छोटी (लगभग 0.5 से 1.0 मि.मी.) होती है। जिसका शरीर हल्का पीला तथा पंखों का रंग सफेद होता है। यह मक्खी, स्वस्थ्य पौधे पर रस चूसती है और साथ ही विषाणु का भी स्वस्थ्य पौधे में संचारण करती है। यही प्रक्रिया पूरे खेत में रोग फैलाती है।