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सरकोरस्पोरा पत्र बुंदकी रोग

सरकोरस्पोरा पत्र बुंदकी रोग

उर्द का यह एक प्रमुख रोग है जिससे प्रतिवर्ष उपज में भारी क्षति होती है। यह रोग भारत के लगभग सभी उर्द उगाने वाले क्षेत्रों में व्यापकता से पाया जाता है। वातावरण में नमीं अधिक होने की दशा में इस रोग का संचरण होता है। अनुकूल वातावरण में यह रोग एक महामारी का रुप ले लेता है। 

यह रोग सरस्कोस्पोरा क्रुएन्टा या सरकोस्पोरा केनेसेन्स नामक कवक द्वारा होता है। यह कवक बीज के साथ मिल जाता है और ऐसे बीज का बिना उपचार के बोने से फसल में अधिक रोग हो सकता है। यह कवक रोग ग्रसित पौधे के अवशेषों व मृदा में पडा रहता है। ऐसे खेतो में अगले वर्ष उर्द की फसल लेने से इस रोग के प्रकोप की अधिक संभावनाएं रहती हैं।

 

लक्षण
सरस्कोस्पोरा पत्र बुँदकी रोग के कारण पत्तियों पर भूरे गहरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जिनका बाहरी किनारा गहरे से भूरे लाल रंग का होता है।

  • यह धब्बे पत्ती के ऊपरी सतह पर अधिक स्पष्ट दिखायी पड़ते हैं। रोग का संक्रमण पुरानी पत्तियों से प्रारम्भ होता है।
  • अनुकूल परिस्थतियों में यह धब्बे बड़े आकार के हो जाते हैं और अन्ततः रोगग्रसित पत्तियाँँ गिर जाती हैं।
  • सामान्यतः पुरानी फलियों में ही संक्रमण होता है रोग के उग्र अवस्था में ये धब्बे शाखाओं तथा फलियों पर भी देखे जा सकते हैं।
  • अनुकूल परिस्थतियों में यह धब्बे बड़े आकार के हो जाते हैं और अन्ततः रोगग्रसित पत्तियाँँ गिर जाती हैं।

 

कभी-कभी यह धब्बे बडे़ (5-7 मि‐मी‐ब्यास) तथा इनका केन्द्र राख के रंग का तथा सीमा (बार्डर) लाल-बैंगनी रंग की होती है। जबकि कभी छोटे (1-3 मि‐मी‐ ब्यास) लगभग गोलाकार तथा केंद्र में पीलापन लिये हल्के भूरे रंग के तथा किनारे लाल भूरे रंग के होते हैं। 

रोग प्रबन्धन 

  • रोग से बचाव के लिये रोग मुक्त बीज का प्रयोग करें
  • रोग के उत्पन्न होने से रोकने के लिये खेत की सफाई व पानी विकास की व्यवस्था करने के साथ साथ फसल चक्र अपनाना चहिये। रोग ग्रस्त फसल के अवशेषों को भली प्रकार से नष्ट कर दें तथा खेत के आस पास वायरस पोसी  फसलों को लगाने से बचे ।बुवाई से पहले बीज को कैप्टान या थीरम नामक कवकनाशी से (2.5ग्रा./कि.ग्रा. की दर से) शोधित करें।
  • फसल पर रोग के प्रारम्भिक लक्षण दिखते ही कवकनाशी कार्बेन्डाजिम (0.05 प्रतिशत) का 5 ग्राम प्रति 10 लीटर या मेंन्कोजेब (0.25 प्रतिशत) 25 ग्राम प्रति 10 लीटर की दर से एक से दो बार छिड़काव 10-15 दिन के अन्तराल पर करें।
  • अगर रोग फलियाँ आने के पश्चात दिखता है तो इस अवस्था में कवकनाशी रसायन के प्रयोग से कोई लाभ नही मिलता है।