• support@dalhangyanmancs.res.in

चूर्णील आसिता रोग
गर्म या शुष्क वातावरण इस रोग के जल्दी फैलाने में सहायक होते हैं। भारत के कई प्रदेशों में यह उर्द की फसलों में व्यापकता से पाया जाता है। गर्म व शुष्क मौसम इस रोग को फैलाने में सहायक होता है।

यह रोग इरीसाइफी पोलीगोनी नामक कवक द्वारा होता है। यह रोग फसल में वायु द्वारा परपोषी पौधों से फैलता है। यह कवक एक मौसम से दूसरे मौसम में संक्रमित पौध अवशेषों पर जीवित रहता है जोकि प्राथमिक द्रव्य (रोग कारक कवक) के रूप में रोग फैलाते हैं।
 

लक्षणः-
इस रोग के मुख्य लक्षण पौधे की सभी वायवीय भागों में देखे जा सकते हैं।

रोग का संक्रमण सर्वप्रथम निचली पत्तियो पर कुछ गहरे (बदरंगे) धब्बों के रुप में प्रकट होता है। इन्ही धब्बों पर छोटे छोटे सफेद बिन्दु पड़ जाते हैं जो बाद में बढ़कर एक बड़ा सफेद धब्बा बनाते हैं। जैसे-जैसे रोग की उग्रता बढ़ती है यह सफेद धब्बे न केवल आकार में बढ़ते हैं। परन्तु ऊपर की नई पत्तियों पर भी विकसित हो जाते है। अन्ततः ऐसे सफेद धब्बे पत्तियों की दोनों सतह पर, तना, शाखाओं एवं फली पर फैल जाते हैं। कालान्तर में कवक के माइसीलिया एवं कोबीडिया युक्त सफेद चूणर्िाल धब्बों का फैलाव पौधें के अधिकंाश भाग पर हो जाता है।

 कभी कभी धब्बों में भूरापन व ऊतक क्षय भी देख जाता है।

अत्यधिक प्रभावित पौधों की पत्तिया ऐसे दिखती है। जैसे कि उनपर पाउडर छिड़काव दिया गया है। इससे पौधों की प्रकाश संश्लेषण की क्षमता नगण्य हो जाती है और अन्त में संक्रमित भाग झुलस/सूख जाते हैं

 रोग प्रबन्धन 

  • रोग अवरोधी प्रजातियाँ का चुनाव करना चाहिए। विशेषकर रबी के समय जैसे एल.बी. जी. 17 , एल. बी. जी. 402 , टी. ए. आर. एम. 1 , पूसा 9072 ।
  • फसल पर घुलनशील गंधक का 0.3 प्रतिशत घोल का छिडकाव रोग का पूर्णतः प्रबंधन कर देता है।  रोगो के लक्षण दिखते ही छिड़काव कर दे तथा आवश्यकतानुसर 10-15 के अन्तराल परर पुनः छिड़काव करें।
  • कवकनाशी जैसे कार्बेन्डाजिम (0.5 ग्रा./ली. पानी) या केराथेन का 1 मि.ली./ली. पानी की दर से घोल बनाकर छिड़कने से भी इस रोग का नियंत्रण हो जाता है। प्रथम छिड़काव रोग के लक्षण दिखते ही करना चाहिए। आवश्यकतानुसार दूसरा छिड़काव 10-15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए।