शीर्ष शाखायें तोड़ना (खुटाई)
खेत में चना के पौधे जब लगभग 20-25 से.मी. के हों तब शाखाओं के ऊपरी भाग को अवश्य तोड़ दें। ऐसा करने से पौधों में शाखाये अधिक निकलती हैं और चने में उपज अधिक प्राप्त होती है।
चना की खुटाई बुवाई के 30-40 दिनों के भीतर पूर्ण करें तथा 40 दिन बाद नहीं करनी चाहिए।
फसल अवशेष प्रबन्धन
पिछले दशक से देखा गया है कि किसान फसल काटने के बाद वहाँ पर आगामी फसल लेने हेतु फसलों केंं अवशेष को जला देते हैं। फलस्वरूप, पर्यावरण प्रदूषित होता है एवं फसल अवशेष में उपलब्ध पोषक तत्वों का हृस होता है। एक टन फसल अवशेष जलाने पर तकरीबन 3 किग्रा. विशाक्त पदार्थ, 60 किग्रा. कार्बन मोनो ऑक्साइड, 1460 किग्रा. कार्बन डाई ऑक्साइड, 199 किग्रा. राख एवं 2 किग्रा. सल्फर डाई ऑक्साइड स्त्रावित होते हैं। अतः फसल अवशेष प्रबन्धन अतिआवश्यक है तथा इसे निम्न विधि द्वारा किया जा सकता है-
क- फसल अवषेश को खेत में समाविष्ट करना।
ख- पलवार बिछाना।
ग- कम्पोस्ट खाद/केंचुआ खाद बनाना।
घ- हेपी सीडर या टर्बो हेपी सीडर द्वारा बुवाई करना।
ड़- स्टार व्हील ड्रिल द्वारा बुवाई करना।
च- जीरो टिल-कम-फर्टिड्रिल द्वारा बुवाई करना।
छ- संरक्षित जुताई पद्धति द्वारा खेती करना।
इस प्रकार फसल अवशेष प्रबन्धन के निम्नांकित फायदे है-
अ. फसल अवशेष सड़कर मृदा की उर्वरता को बढ़ाते हैं। उदाहरण स्वरूप अरहर की लगभग 2.8 टन पत्तियाँ (एक हेक्टेयर क्षेत्र से प्राप्त) खेत में झाड़ने से 8-15 किग्रा. नत्रजन, 2.5-5.0 किग्रा. फॉस्फोरस तथा 8-24 किग्रा. प्रति हेक्टेयर पोटाश मृदा में बढ़ सकती है।
ब. फसल अवशेष द्वारा मिट्टी को ढकने या पलवार से मृदा का तापमान नही बढ़ता है और न ही अधिक घटता है। परिणामस्वरूप मृदा में सूक्ष्म जीवों की सक्रियता एवं संख्या बढ़ जाती है जो कि पौधों के लिए पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाने में सहायक है।
स. फसलों को अधिक लू एवं पाले से बचाना।
द. मृदा में नमी संरक्षित करना एवं सिंचाई की बारंबारता को कम करना। तथा जल उपयोग क्षमता बढ़ाना।
य. पर्यावरण प्रदूषण से बचाव एवं मृदा गुणवत्ता को बढ़ावा देना।
र. खरपतवार नियंत्रण में सहायक।