चाँदनी (एस्कोकाइट अंगमारी)
यह एक बीज जनित रोग है। रोग ग्रस्त पौधों के अवशेष रोग के फैलने का मुख्य कारण है।
एस्कोकाइटा पत्ती धब्बा रोग एस्कोकाइटा रैबी नामक फफूँद द्वारा फैलती है। इस रोग का संक्रमण उत्तर भारत के उन स्थानों पर अधिक होता है जहाँ फसल के दौरान वातावरण आर्द्र हो या वर्षा के साथ-साथ तापमान कम हो। जैसे-जैसे पौधे की परिपक्वता बढती जाती है इस रोग की सम्भावना बढ़ती जाती है। उच्च आर्द्रता एवं कम तापमान की स्थिति में यह रोग फसल को क्षति पहुँचाताहै। इस रोग का संक्रमण सामान्यतः फूल व फल लगने की अवस्था में अधिक होता है। एस्कोकाइट अंगमारी रोग का प्रकोप सामान्यतः देश के उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र व हिमालय की तलहटी क्षेत्रों में होता हैं।
यदि दिन का तापमान 20 डिग्री सेलसियश व राज का जापमान 10 डिग्री सेलसियश के आस पास हो तो यह रोग तीव्र गति से फैलता है।
लक्षण
- इस रोग के लक्षण पौधों के सभी वायवीय भागों पर दिखाई देते हैं।
- नवीन पत्तियों पर छोटे-छोटे गोल व भूरे रंग के धब्बे बनते हैं। ये धब्बे धीरे धीरे पौधें की शाखओ की पत्तिया पर दिखने लगते और कलियों तक फैल जाते है ।डंठलों एवं शाखाओं पर ये धब्बे आकार में लम्बे तथा गहरे भूरे रंग के होते हैं।
- अनुकूल वातावरण के चलते यह धब्बे बढ़ते रहते हैं, अन्ततः तना व शाखाओं को चारों ओर से घेर लेते हैं। धब्बे का आकार 3-4 सेमी. तक हो सकता है।
- रोग की उग्र अवस्थामें पूरा पौधा ही सूख जाता है
- जिसके करण धब्बे के ऊपर वाला भाग मुरझा जाता है और अन्त में मर जाता है धब्बे के उपर काले रेग के बिन्दु देखे जा सकते है। रोग की उग्र अवस्था में धब्बे फलियों तथा दानों पर भी विकसित हो सकते हैं। व कभा कभी ध्ब्बों में पिकवीड़िया साफ देंखे जा सकते है
रोग के प्रतिकूल परिस्थितिया होंने पर पौधे मरता नही है किन्तु पूरे पौधे पर गोल धब्बे जिनकी किनारी भूरे रंग की होती है देखने ता सकते है। ध्ब्बे का मध्य भाग ग्रे धुए रंग का होता है जिसमें गोलाई में पिकनीड़िया विन्यासित रहतें है।
रोग प्रबन्धन
- फसल चक्र अपनायें। तथा चने की फसल को बार बार न लगाये तीन चार साल के अन्तर पर फसल को लगाये ।
- संक्रमित पौधों के अवशेषों को एकत्र करके जला देना चाहिए।
- फसल की बुवाई नवम्बर माह के तृतीय सप्ताह तक करने से रोग कम लगता है।
- क्षेत्र आधारित अवरोधी प्रजातियों का बुवाई के लिए चयन करें। जैसे जीन 543 पूसा 256, रौख , जी. एन. 146, पी.बी.जी. 1
- चाँदनी से प्रभावित या ग्रसित बीज को नहीं उगाएँ
- गर्मियां में गहरी जुताई करें एवं ग्रसित फसल अवशेष एवं अन्य घास को नष्ट कर देवें।
- कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत एवं थिराम 50 प्रतिशत (1:3) 3.0 ग्राम की दर से अथवा ट्राइकोडर्मा 4.0 ग्रा./किग्रा. बीज की दर से बीज शोधन करें।
- केप्टान या मेंकोजेब या क्लोरोथेलोनिल (2-3 ग्रा./लि. पानी) का 2-3 बार छिड़काव करने से रोग बिमारी को रोका जा सकता है। फूल व फली लगने के समय ट्राईडेमार्फ एम. या डाइथिसान का भी प्रयोग किया जा सकता है