धूसर फफूँद (बोट्राइटिस ग्रे मोल्ड)
यह चना की फसल का एक महत्वपूर्ण रोग हैं। इस रोग का संक्रमण सामान्यतः चना की फसल में फरवरी - मार्च के महीने में फूल लगने वाली अवस्था में होता है। यह रोग बोट्राइटिस सिनेरिया नामक कवक द्वारा फैलाता हैं।अनुकूल वातावरण होने पर यह रोग सामान्यतः पौधों में फूल आने एवं फसल के पूर्णरूप से विकसित होने पर फैलता है। वायुमण्डल एवं खेत में अधिक 70-90 प्रतिशत आर्द्रता तथा वायवीय तापमान 20-25c से.ग्रेड होने पर इस रोग को संक्रमण अधिक होता है। जब पौधे का उपरी भाग घना हो जाता है। इस रोग का संक्रमण सामान्यतः देश के तराई क्षेत्रए बिहार का ताल क्षेत्रों में होता हैं। यह कवक बीज व फसल के अवरूषों में जीवित रहता है।
लक्षण
- प्ररम्भ्कि अवस्था में पत्तियॅा तना , फूल जाती और मुलायम हो जाती है।
- पौधों की पत्तियों, डन्ठलों, शाखाओं व फूलों पर भूरें या काले भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। फूल झड़ जाते हैं एवं संक्रमित पौधे पर फलियाँ नही बनती है।
- शाखाओं और तनों पर जहाँ फफूँद के संक्रमण से भूरे या काले धब्बे पड़ जाते हैं, उस स्थान पर पौधा गल या सड़ जाता है। तन्तुओं के सड़ने के कारण टहनियाँ टूटकर गिर जाती है। रोगग्रस्त फूल झड़ जाते है
- संक्रमित भागों पर फफूँदी का रंग धीरे-धीरे मटमैला भूरा व सलेटी सा हो जाता है।
- अनुकूल वातावरण के चलते ये धब्बे कई सेंटीमीटर (10-30 मी. मी.) तक बढ़ जाते हैं जिसके कारण तना शाखा से आसानी से टूट जाता है।
- फलियों में दाने नही बनते हैं, एवं बनते भी है तो सिकुडे़ हुए होते हैं। संक्रमित दानों पर भूरे व सफेद रंग के कवक तन्तु दिखाई देते हैं।
रोग के प्रबन्धन
- इस रोग से प्रभावित क्षेत्रों में पंक्ति से पंक्ति के बीच की दूरी (45 से.मी.) को बढ़ाकर बुवाई करें ताकि फसल को अधिक धूप एवं प्रकाश प्राप्त हो।
- आवश्यकता से अधिक सिंचाई न करें।
- उर्वरकों की संस्तुत मात्रा में ही प्रयोग करें।
- रोग प्रतिरोधी प्रजातियों की बुवाई करें।
- बुवाई नवम्बर के दूसरे पखवारे में करे
- संस्तु बीज दर से कम मात्रा में बीज की बुवाई करे ।
- कार्बेन्डाजिम 25 प्रतिशत व थिरम 50 प्रतिशत के मिश्रण से 2.5 ग्राम प्रति किग्रा की दर से बीज उपचारित करे।
- यह रोग प्रायः नवजात पौधों में विशेषकर हल्की नमीसुक्त बलुई मिटटी में उत्पन्न होता है। और खड़ी फसल को काफी क्षति पहुचाता है।
- रोग के लक्षण दिखाई देते ही तुरन्त केप्टान या कार्बेंडाजिम या मेंकोजेब या क्लोरोथेलोनिल का 2-3 बार एक सप्ताह के अन्तराल पर छिड़काव करे ताकि प्रकोप से बचा जा सकें।