भूमि की तैयारी
उत्तर भारत में बलुई दोमट , मध्य भारत में लाल व काली मिटटी में लैटराइट मिटटी में उर्द की खेती की जाती है हालांकि उर्द की आर्दश खेती के लिये भारी मृदा जिसमें पानी रोकने की अच्छी क्षमता हो, उपयुक्त रहती है जिसका पी.एच. मान न्यूट्रल हो । वर्षा ऋतु में भी अच्छी जल निकास क्षमता वाली मृदा में उर्द की खेती की जाती है। बुवाई से पहले खेत में पर्याप्त नमी होना अति आवश्यक है। उर्द की खेती के लिए 2-3 जुताई उपयुक्त रहती हैं। जल भराव से इन फसलों को नुकसान होने का खतरा रहता है। अतः वर्षा ऋतु में खेत में जल निकास का उचित प्रबंध रखना चाहिए। उर्द की खेती के लिए भूमि भुरभुरी, समतल व खरपतवार रहित होनी चाहिए। दीमक के प्रकोप से बचने के लिए 20-25 कि.ग्रा./हे. लिण्डेन (10%) अथवा कार्बोरियल (50%) धूल मृदा में उस समय मिलानी चाहिए जब खेत की तैयारी अन्तिम चरण में हो। 10 कि.ग्रा./हे. फोरेट या एल्डीकार्ब का प्रयोग भी लाभदायक रहता है। रबी फसल की काटाई के उपरान्त एक गहरी जुताई अवश्य करनी चाहियें इससे कि मृदा में नमी बनी रहती है,और अगली फसल काफी हद तक रोग कीट व खरपतवार से मुक्त रहती है।