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भूमि का चुनाव व तैयारी

भूमि का चुनाव 

मसूर की खेती अधिक क्षारीय या अम्लीय भूमि को छोङकर सभी प्रकार की भूमि में, जहाँ पर समुचित जल निकास एवं सिंचाई की व्यवस्था हो, की जा सकती है परन्तु इसकी खेती के लिए दोमट अथवा भारी भूमि अधिक उपयुक्त होती है। अधिक क्षारीय या अम्लीय भूमियों में मसूर की जड़ों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणुओं का विकास नही होता जिसके कारण पैदावार में भारी कमी आती है। महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश की काली मिटटी में तथा असम औरपश्चिमी बंगाल की गद युक्त दोमट मिटटी व चिकनी मिटटी में भी मसूर की खेती की जा सकती है।

भूमि की तैयारी   

मसूर की बुवाई के लिए खेत को एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से करीब 9 इंच गहरी जुताई करें तथा इसके बाद हैरो से दो बार क्रास जुताई करने के बाद अच्छी तरह से पाटा लगाकर ख्रेत तैयार करें। बुवाई से पूर्व वर्षा न होने की स्थिति में मृदा में पर्याप्त नमी नहीं होती है ऐसे में बुवाई से पूर्व सिंचाई कर (पलेवा) खेत को तैयार करने की संस्तुति की जाती है। मिटटी खरपातवार व पूर्व फसल के अवशेषों से मुक्त होनी चाहियें उतेरा फसल प्रणाली के अर्न्तगत धान की फसल करने के 7-10 दिन पूर्व मसूर छिटकवां विधि से बुआई कर दी जाती है।