भूमि का चयन व तैयारी
मूँग की खेती उत्तर भारत की बालुई-दोमट मिटृटी से लेकर मध्य भारत की लाल एवं काली मिट्टी तथा दक्षिण भारत की लाल लैटराइट मृदा में भली भाँति की जा सकती है। यद्यपि इसकी खेती के लिये अच्छे जल निकाश वाली बलुई-दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। मूँग की बुवाई से पूर्व खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है। इसके लिए पलेवा करने के उपरान्त 2-3 बार जुताई करके पाटा लगाना चाहिए ताकि नमी का हृस न हो। खेत को अच्छी प्रकार से समतल करना चाहिए तथा जल निकाश की उचित व्यवस्था होनी चहिए। खेत खरपतवार रहित होना चाहिए, जिससे फसल की बढ़वार अच्छी हो। साथ ही खेत में सिंचाई की उचित व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए। ग्रीष्म/बसंतकालीन मूँग की खेती के लिए पिछली फसल काटने के बाद एक सिंचाई करके 2 बार हैरो चलाकर पाटा लगा देना चाहिए। जल भराव से इन फसलों से नुकसान होने का खतरा रहता है। अतः वर्षा ऋतु में खेत में जल निकास का उचित रखना चाहिए। दीमक के प्रकोप से फसल को बचाने के लिए 20-25 कि.ग्रा./हे. लिण्डेन (10%) अथवा कार्बोरियल (59%) धूल मृदा में खेत की तैयारी के अन्तिम चरण में मिलानी चाहिए। 10 कि.ग्रा./हे. फोरेट या एल्डीकार्ब का प्रयोग भी लाभदायक होता है।