भूमि का चुनाव
मटर के पौधे को विभिन्न प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकता है। लेकिन अधिक जल-निकास वाली मृदा सबसे उपयुक्त होती है। मृदा को कार्बनिक पदार्थों से युक्त होना चाहिए जिससे ये पौधे को सूक्ष्म पोषक तत्व अधिक समय तक उपलब्ध करा सकें। विभिन्न मृदा प्रकारों में गहरी दोमट मिट्टी जो गंगा के मैदानी भागों में बहुतायत से मिलती है उपयुक्त है। मटर के पौधे क्षारीय मृदा में अम्लीय मृदा की अपेक्षा अधिक सहिष्णु होते हैं लेकिन अत्यधिक उत्पादकता हेतु उदासीन मृदा (पी0एच0 7.0) उपयुक्त है। मटर की फसल हेतु अधिक प्रकाश अवधि व हवादार क्षेत्रों की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त हवा की आवश्यकता जीवाणुओं की वृद्धि के लिए भी पड़ती है। जो नत्रजन स्थिरीकरण का कार्य किया करते हैं। मटर को ऐसी मृदा में नहीं उगाना चाहिए जो पूर्णतः शुष्क हो अपितु आदर्श मृदा, रेतीली, दोमट, मुलायम एवं नमीयुक्त उपयुक्त होती है।
भूमि की तैयारी
खेत को अच्छी तरह से तैयार करने के लिए 2-3 जुताई की आवश्यकता होती है। पिछले फसल के अवशेष व खरपतवार आदि को अच्छी तरह से निकालना आवश्यक है। गोबर की खाद यदि उपलब्ध है तो 10-15 टन/हेक्टेयर की दर से आखिरी जुताई के समय खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए। इसके अतिरिक्त नत्रजन, फास्फोरस, पोटाश एवं गंधक की संस्तुत की मात्रा को भी बुवाई के समय छिड़काव विधि से खेतों में मिला देना चाहिए। अंत में खेत का इस तरह से समतलीकरण करना चाहिए, जिससे सिंचाई के दौरान पानी का बराबर रूप से खेत में वितरण एवं निस्तारण हो सके।