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बीजशोघन 

बीजों को बुवाई से पहले राइजोबियम कल्चर से उपचारित करने से अधिक मात्रा में जड़ ग्रंथियों का निर्माण होता है जो वातावरण में मौजूद नत्रजन का स्थिरीकरण करता है, जिसका प्रयोग वह स्वयं भी करता है तथा शेष बचे हुए नत्रजन मृदा की उर्वरता में वृद्धि करता है जो अगली फसल द्वारा ले लिया जाता है। दलहनी फसलों में नत्रजन का स्थिरीकरण जड़ ग्रन्थियों के साथ-साथ राइजोबियम बैक्टीरिया की संख्या पर भी निर्भर करता है। अतः मटर में उचित प्रकार के राइजोबियम कल्चर से उपचार करने पर नत्रजन स्थिरीकरण की क्षमता भी बढ़ जाती है। मटर में बीजोपचार के लिए 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर 10 किलो बीज के लिये पर्याप्त होता है। बीजोपचार 50 ग्राम गुड़ या शीरा, 2 ग्राम गोंद एवं 1/2 लीटर पानी के साथ घोल बनाकर किया जाता है। पहले इस घोल को गर्म करते है तथा बांस के डण्डे की सहायता से हिलाते हैं। ठण्डा होने के बाद इसमें राइजोबियम को मिलाकर गाढ़ा घोल तैयार कर लिया जाता है। अब इस अत्यधिक गाढ़े घोल को बीजों में बराबर-बराबर मिला दिया जाता है। इस अवस्था में बीज को सूर्य के प्रकाश से दूर रखते हुए ठण्डे स्थानों पर पालीथिन सीट पर फैलाकर छाया में सुखा लिया जाता है। बुवाई के समय भी सूर्य के प्रकाश से बीजों का बचाव किया जाता है। मटर में विभिन्न प्रकार के बीज जनित रोग और मृदा जनित रोगों का प्रकोप भी होता है जो अंकुरण के समय तथा अंकुरण के बाद भी अत्यधिक हानि पहुंचाते हैं। अतः इसके नियंत्रण हेतु बीज को केप्टान, थीरम अथवा कार्बेन्डाजिम जो राइजोबियम के साथ एक अच्छा व्यवहार करते हैं, से उपचारित करना चाहिए। इस उपचार हेतु फफूंदीनाशी की 2.5 ग्रा0/कि.ग्रा. की दर उपयुक्त है। फफूंदीनाशी  द्वारा उपचार प्रायः राइजोबियम कल्चर के उपचार से 2-3 दिन पहले कर लिया जाना चाहिए।